गुरुवार, 31 दिसंबर 2009

सफर में किन्नर और न्यू ईयर

साल का आखिर दिन 31 दिसंबर सुबह 12 बजे का समय मुरैना रेलवे स्टेशन पर खड़ी ताज एक्सप्रेस ने सीटी मारी.. सीटी की आवाज सुनकर प्लेटफार्म पर टहल रहे यात्रियों में भगदड़ मच गई और वह दौड़ कर गाड़ी में जा बैठे।
मैं भी उन यात्रियों में शामिल था,वैसे मेरा प्रतिदिन ही मुरेैना से ग्वालियर आना-जाना होता है। मैं अपने एक साथी के साथ ताज एक्सप्रेस के एक डिब्बे में जा बैठा। गाड़ी की धीरे-धीरे रफ्तार बढ़ रही थी, डिब्बे में ज्यादा भीड़भाड़ नहीं थी, डिब्बे में मौजूद यात्री आराम से सीटों पर लेटकर सफर कर रहे थे,उनमें कुछ विदेशी यात्री भी थे, जो शायद आगरा से सवार हुए थे। कुछ यात्रियों के बच्चे डिब्बे में मौजमस्ती कर रहे थे,तभी वहां जोर-जोर से तालियोंं की आवाज गूंजने लगी। फिर क्या था डिब्बे में सवार सभी यात्रियों का ध्यान उस ओर चला गया।
तालियां बजाने वाले कौन थे,यह बताना जरूरी नहीं सभी जानते हैं वह कौन हो सकते है। तालियां बजाना उनका पेशा है किसी के घर में कोई शुभ कार्य हो वहां उनका आना न हो ऐसा हो ही नहीं सकता। हां आप ठीक समझे यह लोगों कोई और नहीं हिजड़े (किन्नर)थे। सपना और कविता नाम के यह दोनों हिजड़े डिब्बे में फिल्मी गीत गाकर यात्रियों से नववर्ष के नाम पर पैसे मांग रहे थे। इनके पैसे मांगने के तरीके को यदि आप देखते तो आश्चर्यचकित हो जाते उनकी आवाज में ऐसा जादू था कि हर कोई पलट-पलट कर उनकी ओर देख रहा था। वह कभी धड़कन फिल्म का गीत गाते थे तो कभी कर्मा फिल्म का जिसके बोल थे...
बड़े दिनों के बाद मिली है यह दारू..
यहां तक तो सब सामान्य था,लेकिन जब सपना नाम का हिजड़ा एक विदेशी यात्री के पास पहुंचा और उसने उससे अंग्रेजी में पूछा
वॉट इज यूअर नेम..
यह सुनकर डिब्बे में सन्नाटा खिंच गया और सभी यात्री सपना की ओर देखने लगे फिर क्या था उस विदेशी यात्री और सपना के बीच अंग्रेजी में जो वार्तालाप हुआ वह सभी को आश्चर्यचकित करने वाला था, हम जिन हिजड़ों को इंसान का दर्जा देने से कतराते हैं और उन्हें घृणाभरी नजरों से देखते हैं, उन्होंने यह दिखा दिया कि वह भी अच्छी अंगे्रजी बोल कर देश का गौरव बढ़ा सकते हैं।
जब डिब्बे में सवार एक दंपति ने सपना को अपनी कोई समस्या बताई तो उसने उन्हें एक परिपक्व बुजुर्ग की भांति कुछ देसी टिप्स दिए और कहा ऐसा कर देना सब ठीक हो जाएगा।
यह सब देखकर मुझसे रहा नहीं गया और मैं अपने साथी के साथ उनके पास जा पहुंचा। हमारे पूछने पर सपना और कविता ने बताया कि वह धौलपुर से ग्वालियर के बीच ताज एक्सप्रेस में इसी तरह लोगों का मनोरंजन करते हैं। और कल नया साल है इसलिए आज हम, लोगों से नववर्ष की इनाम मांग रहे हैं और भगवान से दुआ कर रहे हैं कि नया साल सभी के लिए खुशहाली लेकर आए, देश में अमन शांति रहे, भ्रष्टाचारी नेताओं का नाश हो..
अंत में सपना और कविता ने सभी को हैप्पी न्यू ईयर कहा और गाड़ी से उतर गए।

रविवार, 27 दिसंबर 2009

पिच खराब..दर्शकों का क्या दोष



रविवार को देश की राजधानी दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान पर खेला गया भारत और श्रीलंका के बीच पांचवें और अंतिम एक दिवसीय क्रिकेट मैच को पिच पर असीमित उछाल आने के कारण रद्द कर दिया। जिससे स्टेडियम में उपस्थित दर्शकों के बीच मायूसी छा गई थी।
ऐसा होना भी लाजिम था क्यों मुंह मांगा पैसा देने के बाद भी दर्शकों को वन डे क्रिकेट मैच देखने को नहीं मिला, आज रविवार होने के कारण कई दर्शकों ने सोचा था कि रविवार की छुट्टी का पूरा सदुपयोग वन डे देखकर किया जाए। लेकिन मैच प्रारंभ होने के कुछ ही समय बाद मैच को रद्द कर दिया गया।
हालांकि मैच के रद्द होने से कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ा क्यों भारत पहले ही यह सीरीज जीत चुका है। लेकिन हमें दर्द है उन दर्शकों की पीड़ा का जिन्होंने ने मुंह मांगे पैसे खर्च कर वन डे के लिए लंबी लाइन में लगकर टिकट खरीदे थे, सुबह से सारे काम छोड़कर स्टेडियम में आ जमे थे। उन्होंने सोचा था वनडे देखकर सन डे का पूरा मनोरंजन करेंगे। लेकिन मैच रद्द होने के बाद स्टेडियम में मौजूद पचास हजार दर्शकों की उम्मीदों पर पानी फिर गया।
स्टेडियम में मौजूद हर क्रिकेट प्रेमी का चेहरा यह पूछ रहा था पिच खराब थी तो मैच का आयोजन यहां क्यों किया गया? यदि पिच असीमित उछाल ले रही थी तो मैच रद्द करने के बाद वहां प्रदर्शन मैच (शो मैच) खेलकर खिलाड़ी उन दर्शकों का मनोरंजन तो कर सकते थे जिन्होंने इस वनडे को देखने के लिए टिकट खरीदे थे।

गुरुवार, 24 दिसंबर 2009

खाना, खजाना और जनाना

एक जमाना था जब खाना, खजाना और जनाना को पर्दे में रखा जाता था,लेकिन जैसे-जैसे लोगों पर पाश्चात संस्कृति हावी हुई पर्दे में रहने वाली यह तीनों चीजों की खुलकर नुमाइस होने लगी है।
खाने की नुमाइस देखनी हो तो किस करोड़पति द्वारा आयोजित भोज में शरीक हो जाईए। वहां जाकर आपको देखने का मिलेगा की अन्न की किस तरह अपमान किया जाता है। एक समय था जब व्यक्ति भोजन करने से पहले अन्न देवता को प्रणाम करता था और भोजन समाप्त होने पर थाली को चरण स्पर्श करने के बाद ही उठाता था, लेकिन अब क्या होता है सभी जानते है इसलिए हमें कुछ कहने की जरुरत नहीं है?
अब बात करते है खजाने की हमारे देश हो सोने की चिडिय़ां कहा जाता था, उस जमाने के इंसान मेहनत मजदूरी करके जो भी कमाता था उसे सिर से लगाकर उसका कुछ हिस्सा भोग के रुप से भगवान को अर्पण करने के बाद ही खर्च करता था। उसका इस बात पर जोर रहता था कि उसके द्वारा जोड़ा गया था धन वक्त वेवक्त जरुरत पडऩे पर काम आएगा। इस कंप्यूटर युग में धन की खुलकर नुमाइश हो रही है। व्यक्ति जरुरत से ज्यादा खर्च करता है और कर्जदार बन जाता है। बने भी क्यों नहीं बैंकें भी बुला-बुलाकर कर कर्जदार बना रही है। स्थिति यह कि वह जिस मकान में रहता है वह लोन पर, वह जिस वाहन पर चलता है वह लोन पर,उसकी जेब में जो क्रेडिट कार्ड होता है वह दैनिक जरुरत की वस्तुएं उधारी में दिलाने के काम आता है।
अब बात की जाए जनाना (महिलाओं) की कभी पर्दे में रहने वाली महिलाएं आज राजनीति में खुलकर हिस्सेदारी कर रही है यह बात है महिला-पुरुष में भेदभाव नहीं होना चाहिए। लेकिन राजनीति कैसा क्षेत्र है यह सभी जानते है। कुछ महिलाओं का यदि छोड़ दिया जाएं तो महिलाओं के लिए राजनीति की डगर काफी कठिन है। लोकसभा, विधानसभा के चुनावों को नजरअंदाज करते हुए यदि हम नगर निकाय व जनपद पंचायत के चुनावों पर नजर डाले तो यहां राजनीति में उतरी महिलाओं की स्थिति काफी दयनीय है। घुंघट की ओट में महिलाओं को चुनाव लड़ा दिया था। कभी गांव की चौपाल पर न आने वाली महिलाएं या उनके परिजन राजनीति का प्रसाद चखने के लिए उन्हें दर-दर भटकने पर मजबूर कर देते है। कुछ को सत्ता का सुख मिल भी जाता है लेकिन चुनाव के बाद क्या होता है सभी जानते है जनप्रतिनिधि बनी महिला फिर चौके-चूल्हे में व्यस्त हो जाती है और सत्ता का मजा लेते है उनके पति...

रविवार, 20 दिसंबर 2009

जार्ज कैसल शिवपुरी

इतिहास: प्रिंस ऑफ वेल्स (जार्ज पंचम) भी वर्ष 1910 में ग्वालियर आए थे और वहां से उन्हें शिवपुरी में शेर का शिकार करने के लिए आना था। चूंकि शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क में ही शिकारगाह बने हुए थे, इसलिए जॉर्ज पंचम के रुकने एवं विश्राम के लिए नेशनल पार्क में ही एक कोठी का निर्माण कराया गया। मात्र एक दिन रुकने के लिए बनाई गई यह कोठी तो आकर्षक स्वरूप में तैयार की गई, लेकिन जॉर्ज पंचम का शिवपुरी दौरा रद्ïद हो गया था और वे यहां नहीं आए थे। इंग्लिश शैली में बनाई गई इस कोठी का निर्माण सरदार बांकड़े ने करवाया था
ïिवशेषता: करीब 98 वर्ष पूर्व तैयार की गई जार्ज कैसल कोठी आज भी सैलानियों के आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है। जो भी सैलानी शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क में भ्रमण के लिए पहुंचता है तो वह इस कोठी के आकर्षण में बंधे बिना नहीं रह पाता।
पर्यटकों की पसंद: माधव नेशनल पार्क में हर साल करीब 15 से 20 हजार पर्यटक आते हैं। इनमें से अधिकांश जार्ज कैसल को देखने के लिए पहुंचते हैं।