'सखी सैयां तो बहुत ही कमात है महंगाई डायन खाय जात है...Ó फिल्म पीपली लाइव का यह गाना काफी चर्चित हुआ है। तीज-त्योहारों के नजदीक आते ही घर-घर में महंगाई का रोना शुरू हो जाता है,लेकिन बाजारों में उमड़ते ग्राहक और दुकानदारों का बढ़ता कारोबार इस गाने की पक्तियों को बेजान कर रहा है। इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि महंगाई तेजी से बढ़ रही है, लेकिन यह भी सच है कि इसका असर ऐसा नहीं है जैसा एक दशक पहले हुआ करता था।
दिवाली के त्योहार के एक सप्ताह पहले से ही बाजारों मेंं त्योहारी रौनक बिखरने लगी है। कोई सोना खरीद रहा है तो कोई चार पहिया वाहन। गुरुवार को पुष्य नक्षत्र के शुभ मुुहूर्त पर ग्वालियर चंबल अंचल में खरीदारी का आंकड़ा करोड़ों को पार कर गया। ऐसा भी नहीं है कि खरीदारों में केवल धन्नाढ्य वर्ग शामिल है। त्योहारी खरीदारी में समाज का हर वर्ग अपनी हैसियत से ज्यादा पैसा खर्च कर रहा है। इसमें उसकी मजबूरी भी दिखाई देती है। क्योंकि वह महंगाई के नाम पर रोने के सिवाय कर भी क्या सकता है?
देश की अर्थ व्यवस्था चलाने वाले शायद यह भलीभांति जानते है कि लोग जिन्हें गरीब कहते है वह भी अब अमीर हो गए है या उन्होंने भी अमीर के नक्शे कदम पर चलना शुरू कर दिया है। ठेले पर सब्जी बेचने वाला हो या आपके घर में काम करने वाला नौकर। वह भी आधुनिक तकनीकि का मोबाइल उपयोग करता है और अपने बच्चे को सरकारी स्कूल की जगह कान्वेट स्कूल में पढ़ा रहा है। यह भी एक शुभ संकेत है कि बेलगाम बढ़ती महंगाई से आम आदमी ने दो-दो हाथ करना सीख लिया।
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